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सागर शहर का साहित्यिक परिदृश्य - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

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Dr (Miss) Sharad Singh

लेख 


सागर शहर का साहित्यिक परिदृश्य


- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह


      किसी भी क्षेत्र की सांस्कृतिक एवं जातीय पहचान उस क्षेत्र के साहित्य एवं साहित्यिक गतिविधियों से होती है। साहित्य में क्षेत्रविशेष के संस्कार, परम्परा एवं नवाचार का प्रतिबिम्ब दृष्टिगोचर होता है। अतीत, वर्तमान और भविष्य को एक साथ जोड़ कर चलना साहित्य में ही संभव है। सागर साहित्य एवं संस्कृति जगत् में अपनी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए देश में ही नहीं वरन् विदेशों में भी विख्यात है। यहां के साहित्यकारों की रचनाएं विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोधसंदर्भ के रूप में पढ़ी जाती हैं तथा उन पर शोध कार्य भी किया जाता है। वस्तुतः सागर की भूमि साहित्य सृजन के लिए सदा से उर्वरा रही है। यदि अतीत के पन्ने पलटे जाएं तो एक से बढ़ कर एक कालजयी कवि और उनकी रचनाएं दिखाई देती हैं। जिनमें सर्वप्रथम कवि पद्माकर (सन् 1753-1833) का नाम लिया जाना उचित होगा। सागर झील के तट पर स्थित चकराघाट पर स्थापित कवि पद्माकर की प्रतिमा आज भी सागर के साहित्यकारों के लिए प्रेरणास्त्रोत का कार्य कर रही है। पद्माकर रचित ग्रंथों में पद्माभरण, जगद्विनोद, गंगालहरी, प्रबोध पचासा, ईश्वर पचीसी, यमुनालहरी आदि प्रमुख हैं। प्रतिवर्ष होली पर सागर का साहित्यवृंद सुबह-सवेरे सबसे पहले चकराघाट पहुंच कर कवि पद्माकर की प्रतिमा को नमन करता है, उन्हें गुलाल लगाता है और इसके बाद ही होली खेलने तथा होली पर केन्द्रित रचनापाठ का क्रम शुरू होता है। कवि पद्माकर के अनुप्रास अलंकार की बहुलता वाले कवित्त छंद हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। उनका यह लोकप्रिय कवित्त देखें -

फागु के भीर अभीरन तें गहि, गोविंदै लै गई  भीतर गोरी 

भाय करी मन की पदमाकर,  ऊपर  नाय अबीर की झोरी 

छीन पितंबर कंमर तें,  सु बिदा  दई  मोड़ि कपोलन रोरी 

नैन नचाई, कह्यौ मुसकाई, लला! फिर खेलन आइयो होरी

Mahakavi Padmakar, Chakraghat, Sagar MP


सागर के साहित्य कोे समय के साथ चलना बखूबी आता है। यहां के साहित्यकारों ने उत्सव के समय उत्सवधर्मिता को अंगीकार किया तो वे स्वतंत्रता संग्राम के समय स्वतंत्रता के पक्ष में स्वर बुलंद करने में आगे रहे। 14 मार्च 1908 को नरसिंहपुर जिले के करेली में जन्मे पं. ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी अपनी बाल्यावस्था से ही सागर आ गए थे और जीवनपर्यन्त सागर में रहते हुए उन्होंने साहित्य सृजन किया। उनकी प्रसिद्ध पंक्तियां हैं- 

जनम जनम के हैं हम बागी, 

लिखी बगावत भाग्य हमारे

जेलों मे है कटी जवानी, 

ऐसे ही कुछ पड़े सितारे

Pt. Jwala Prasad Jyotishi

पं. ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी के समय रामसिंह चैहान बेधड़क, शंकरलाल तिवारी ‘बेढब सागरी’, पं. लक्ष्मी प्रसाद मिश्र ‘कवि हृदय’ साहित्य सृजन कर रहे थे। हिन्दी, उर्दू और बुंदेली में साहित्य सृजन करते हुए इस यात्रा को आगे बढ़ाया इकराम सागरी, लक्ष्मण सिंह निर्मम, जहूर बख़्श, दीनदयाल बालार्क, जयनारायण दुबे, पं. लोकनाथ सिलाकारी, नेमिचन्द ‘विनम्र’, विठ्ठल भाई पटेल, रमेशदत्त दुबे, माधव शुक्ल मनोज, शिवकुमार श्रीवास्तव, अखलाक सागरी आदि ने। साथ ही पन्नालाल साहित्याचार्य ने दार्शनिकतापूर्ण साहित्य का सृजन किया।

 

अपने मौलिक सृजन से साहित्यजगत को उल्लेखनीय रचनाएं एवं कृतियां देने वाले सागर के साहित्यकारों में से कुछ प्रमुख नाम हैं- महेन्द्र फुसकेले, डाॅ. विद्यावती ‘मालविका’, डाॅ. राधावल्लभ त्रिपाठी, डाॅ. गोविंद द्विवेदी, प्रो कांति कुमार जैन, लक्ष्मी नारायण चैरसिया, डाॅ. सुरेश आचार्य, कपूरचंद बैसाखिया, दिनकर राव दिनकर, यार मोहम्मद यार, निर्मलचंद ‘निर्मल’, हरगोविंद विश्व, डाॅ. गजाधर सागर, मणिकांत चैबे ‘बेलिहाज़’, डाॅ. वर्षा सिंह, डाॅ. श्याम मनोहर सीरोठिया, डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह, वृंदावन राय ‘सरल’, अशोक मिजाज़ बद्र, टीकाराम त्रिपाठी ‘रुद्र’, डाॅ. महेश तिवारी, डाॅ. लक्ष्मी पाण्डेय, डाॅ. सरोज गुप्ता, डाॅ. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, वीरेन्द्र प्रधान, डाॅ. वंदना गुप्ता, सतीश पांडे आदि। इनमें से प्रो कांति कुमार जैन, डाॅ. राधावल्लभ त्रिपाठी, डाॅ. सुरेश आचार्य, डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह, अशोक मिजाज़ बद्र का सागर का नाम देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक पहुंचाने में उल्लेखनीय योगदान है। 


सागर में साहित्यक आयोजनों की गरिमापूर्ण परम्परा रही है। कोरोनाकाल के पूर्व कविगोष्ठी, कवि सम्मेलन, चर्चा-परिचर्चा, कथावाचन, समीक्षा वाचन आदि के माध्यम से विभिन्न साहित्यिक संस्थाएं साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक आयोजन सततरूप से कर रही थीं। कोरोना संक्रमण की गंभीरता को देखते हुए सागर की साहित्यिक संस्थाओं नेे समय के अनुरुप स्वयं को ढाला है और वे आॅनलाईन आयोजनों से जुड़ती चली गई हैं। वर्तमान कोरोनाकाल में कई संस्थाएं सक्रिय हैं जो निरंतर आॅनलाईन आयोजन करती रहती हैं। इस कोरानाकाल में साहित्यिक गोष्ठियों ने आॅनलाईन हो कर सोशल मीडिया पर अपनी ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज़ कराई है। व्हाट्सएप्प ग्रुप, फेसबुक लाईव, जूम एप्प हो या गूगल मीट इन सभी पर गोष्ठियां जारी हैं। बुंदेलखंड हिन्दी साहित्य संस्कृति विकास मंच के द्वारा प्रति शनिवार आॅनलाईन कविगोष्ठी का आयोजन किया जाता है। जिसमें संभाग ही नहीं वरन् देश के विभिन्न अंचलों के कवि-कवत्रियों  द्वारा रचनापाठ किया जाता है। इस संस्था के संयोजक मणीकांत चैबे ‘बेलिहाज़’ अपने पुत्र अमित चैबे के तकनीकी सहयोग से इस आयोजन की नियमितता को बनाए हुए हैं। सागर नगर में भव्य साहित्यिक समारोहों के लिए विख्यात श्यामलम संस्था के अध्यक्ष उमाकांत मिश्र एवं सचिव कपिल बैसाखिया ने अपने अथक प्रयासों से साहित्यकार सम्मान, साहित्यकारों को श्रद्धांजलि एवं रचनापाठ का क्रम आॅनलाईन जारी रखा है। उल्लेखनीय है कि श्यामलम संस्था का अपना एक संवेदनशील इतिहास है। संस्था के संस्थापक  श्यामाकांत मिश्र ने बाॅलीवुड में अपने अभिनयकाल के दौरान महसूस किया कि मुंबई की चकाचैंध भरी सिनेमाई दुनिया में संवेदना की कमी है। इसी के साथ उनके मन में विचार आया कि एक ऐसी संस्था अपने गृह नगर सागर में गठित की जाए जिसका उद्देश्य दिवंगत साहित्यकारों को श्रद्धांजलि देना हो। दुर्भाग्यवश वे अपनी संस्था को विकसित होते नहीं देख पाए। किन्तु उनके निधन के उपरांत उनके अनुज द्वय उमाकांत मिश्र एवं रमाकांत मिश्र ने अपने बड़े भाई स्व. श्यामाकांत मिश्र के सपनों को साकार करने में अपना पूरा योगदान दिया है। 


प्रादेशिक स्तर की साहित्यिक संस्थाओं की सागर इकाईयां भी वर्तमान में डिज़िटल माध्यमों को अपनाते हुए आॅनलाईन आयोजनों में संलग्न हैं। अध्यक्ष आशीष ज्योतिषी एवं सचिव पुष्पेन्द्र दुबे मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की सागर इकाई के तत्वावधान में साप्ताहिक गोष्ठियों का आयोजन करते रहते हैं। इसी प्रकार अध्यक्षद्वय टीकाराम त्रिपाठी रुद्र एवं सतीश पांडे द्वारा मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ की सागर एवं मकरोनिया इकाईयों के अंतर्गत् आॅनलाईन काव्यपाठ एवं परिचर्चा का आयोजन कराया जाता है। मध्यप्रदेश हिन्दी लेखिका संघ की सागर इकाई की अध्यक्ष सुनीला सराफ द्वारा काव्य गोष्ठी, परिचर्चा आदि का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष कोरोना आपदा के कारण सागर इकाई की स्मारिका ‘अन्वेषिका’ का मुद्रण एवं वितरण संभव नहीं हो पाने के कारण उसे ई-पत्रिका के रूप में प्रकाशित किया गया। यह कदम सागर के साहित्य जगत् में लेखिका संघ का एक उल्लेखनीय डिज़िटल कदम कहा जा सकता है। मध्यप्रदेश हिन्दी लेखक संघ की सागर इकाई, सागर साहित्यकार संघ भी आॅनलाईन काव्य गोष्ठियों का आयोजन कर रहे हैं। इसके साथ ही नगर के उत्साही युवा यूट्यूब पर चैनल्स चला कर साहित्य की डिज़िटल सेवा कर रहे हैं। जैसे वरुण प्रधान द्वारा ‘प्रधाननामा’ चैनल में सागर के साहित्यकारों का व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रस्तुत किया जा रहा है। 


विपरीत परिस्थितियों में नवाचार को अपनाकर अडिग रहना साहित्यकारों एवं साहित्यसेवियों की विशेषता होती है। इस विशेषता को चरितार्थ करते हुए सागर का साहित्यकार समाज, साहित्य की मशाल को अपनी लेखनी के जरिए उठाए हुए निरंतर आगे बढ़ रहा है और अपने साहित्य के प्रकाश से समाज का पथ-प्रदर्शक बना हुआ है। इसमें दो मत नहीं कि सागर सही अर्थों में साहित्य का महासागर बनता जा रहा है। 

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डॉ (सुश्री) शरद सिंह 

सागर (म.प्र.) 470004


 


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