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जिंदा मुहावरों का समय ... डाॅ शरद सिंह के संस्मरण पुस्तक के अंश - 4

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कल रात मैंने अपनी फाईल पलटी तो उसमें मुझे अपनी 08 जुलाई 1982 की वह रिपोर्ट मिली जो मैंने दस्यु चाली राजा के सरेंडर पर लिखी थी।

निश्चित रूप से योगेंद्र सिंह सिकरवार जी के लिए भी वे दिन अविस्मरणीय होंगे क्योंकि उन दिनों संपूर्ण बुंदेलखंड क्षेत्र में डकैतों का आतंक था । विशेष रुप से पन्ना जिले में डकैत चाली राजा ने आतंक मचा रखा था और इस आतंक को मिटाने के लिए स्थानीय पुलिस बल के साथ में बीएसएफ का भी सहयोग लिया गया था।

मुझे आज भी याद है चाली उर्फ़ चार्ली राजा एक निहायत दुबला-पतला सामान्य-सी कद-काठी वाला एक आम ग्रामीण युवक दिखता था। यदि उसके हाथ में बंदूक न होती तो शायद वह किसी को भी मारने की हिम्मत नहीं रखता। यदि देखा जाए तो ग्रामीणों में से किसी का भी डकैत बनना बदले की भावना के हाथों में हथियार आ जाने की प्रक्रिया थी।
जिन्होंने सरेंडर किया वे जीवित रहे और अपने जीवन की दूसरी पारी जी सके जबकि अनेक डकैत पुलिस के हाथों मारे गए।
इसी संदर्भ में एक और वाकया मुझे याद आ रहा है जब मैं उन दिनों छतरपुर में कक्षा सातवीं में पढ़ती थी। मेरी मां उन दिनों B.Ed ट्रेनिंग के लिए छतरपुर में रह रही थीं और मैं उनके साथ वही पढ़ती थी। उन दिनों छतरपुर जिले में भी डकैतों का आतंक था। जब डकैत पुलिस के हाथों मारे जाते तो पुलिस वाले उनके शवों को ट्रैक्टर ट्रॉली में रखकर सार्वजनिक स्थान पर प्रदर्शित करते थे ताकि बाकी डकैतों तक यह संदेश जा सके कि यदि वे सरेंडर नहीं करेंगे तो उनका भी यही हश्र होगा। साथ ही जनता आश्वस्त हो सके कि डकैत मारे जा रहे हैं।

एक दिन स्कूल से लौटते समय मैंने भी छत्रसाल चौराहे पर ऐसी ही एक ट्रॉली देखी थी जिसमें तीन या चार शव प्रदर्शित थे । मुझे बहुत अज़ीब लगा था, वह सब देख कर। मैंने मां से इस बारे में चर्चा की थी। तब मां ने मुझे समझाया था कि आइंदा मैं ऐसा कोई दृश्य न देखूं और जो देखा है वह सब भुला दूं । उन दिनों तो शायद मैंने भुला भी दिया था लेकिन मेरी स्मृतियों के किसी कोने में वह दृश्य आज भी ताज़ा है और मुझे लगता है कि इस तरह से शवों के प्रदर्शन का वह तरीक़ा बिल्कुल भी ठीक नहीं था क्योंकि सार्वजनिक स्थान पर मेरी तरह बच्चे भी मौजूद होते थे।
पन्ना में पत्रकारिता करते हुए दस्यु उन्मूलन अभियान के बारे में बारीक़ी से जानने का मुझे मौका मिला। डकैत चाली राजा के सरेंडर के बाद यह समस्या खत्म नहीं हुई। कोई न कोई छुटपुट डकैत पैदा होता रहा। एक बार मुझे भी एक एनकाउंटर स्थल देखने का मौका मिला। दरअसल, हम पत्रकारों को सुबह पुलिस की ओर से सूचना मिली कि रात को कुछ डकैतों के साथ एनकाउंटर किया गया है, जिसमें कुछ डकैत मारे गए हैं। घटनास्थल पर उनके शव यथास्थिति मौजूद थे। जिन्हें देखने के लिए हम पत्रकारों को आमंत्रित किया गया था। मैं भी साथी पत्रकारों के साथ घटना स्थल पर गई। वहां मैंने पहली बार किसी ऐसे शव को देखा जिसके सिर पर गोली लगी थी और उसका भेजा बाहर आ गया था। वह मृतक डकैत बिल्कुल भी डकैत जैसा नहीं लग रहा था बल्कि किसी आम ग्रामीण की भांति दिखाई दे रहा था। उन दिनों यह भी अफ़वाह थी कि पुलिस अपना रिकॉर्ड ठीक करने के लिए फेक एनकाउंटर भी कर रही है। उन शवों को देखने के बाद यह कहना कठिन था कि वह रियल एनकाउंटर है या फेक एनकाउंटर। पर हमारे पास पुलिस पर विश्वास करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था क्योंकि हम चाली राजा को देख चुके थे जो देखने में एकदम आम ग्रामीण युवक दिखाई देता था। वैसे मैंने डकैत मूरत सिंह, डकैत मौनीराम सहाय को छतरपुर में उनके आत्मसमर्पण के समय देखा था। जबकि डकैत पूजा बब्बा से मेरी मुलाकात पन्ना में स्थित लक्ष्मीपुर की खुली जेल में हुई थी और उनसे चर्चा भी हुई थी यद्यपि मैं वहां पत्रकार के रूप में नहीं बल्कि वहां के जेलर जो हमारे पारिवारिक परिचित थे, उनके आमंत्रण पर मां और दीदी के साथ गई थी। पूजा बब्बा बहुत ही सुलझे हुए व्यक्ति लगे थे। उनकी एक आंख पत्थर की थी जिससे उन्हें देखने से एक अजीब भय उत्पन्न होता था। लेकिन बातचीत करने के बाद वह भय दूर हो गया था। उन्होंने हमें दूध और इलायची से बनी शरबत पिलाई थी। जब मैंने उनके बारे में जानकारी ली तो पता चला कि वह परिस्थितिवश डकैत बने थे और सरकार के द्वारा खुली जेल में रहकर सामान्य जीवन की ओर फिर से लौटने का प्रस्ताव मिलने पर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया था। वैसे दस्यु मूरत सिंह, मोनी राम सहाय और पूजा बब्बा का व्यक्तित्व उसी प्रकार का था जैसे फिल्मों में अच्छे वाले डकैत दिखाए जाते हैं। डकैत मूरत सिंह के बारे में कहा जाता था कि वे सिर्फ़ अमीरों को लूटते थे और गरीबों की मदद करते थे। वे छतरपुर स्थित जटाशंकर मंदिर के लिए दान-दक्षिणा दिया करते थे। जिस प्रकार मूरत सिंह के सरेंडर में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की विशेष भूमिका रही, उसी प्रकार चाली राजा के सरेंडर में म.प्र.शासन के तत्कालीन संसदीय सचिव कैप्टन जयपाल सिंह की खास भूमिका रही, जो कि पन्ना के ही थे।
Damoh Sandesh, 08,07,1982, Chaali Raaja, Dr Sharad Singh




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