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प्रेमचंद जयंती पर.....कहानियां जो सोचने को विवश करती हैं.....कहानी - ठाकुर का कुंआ

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Dr (Miss) Sharad Singh
कुछ कहानियां पढ़ने के बाद मन-मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ जाती हैं। प्रेमचंद के कथापात्र आज भी हमारे गांव, शहर और कस्बों में दिखाई देते हैं। दृश्य बदला है लेकिन इन पात्रों की दशा में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है। प्रेमचंद का किसान साहूकार के कर्ज तले दबा हुआ था तो आज का किसान भी कर्ज के बोझ से आत्महत्या करने को विवश हो उठता है। प्रेमचंद का किसान साहूकार के निजी बहीखाते में बंधुआ था, तो आज का किसान कर्ज़माफ़ी के सरकारी बहीखाते में बंधुआ है। शराबी पिता-पुत्र के परिवार की बहू के रूप में इकलौती स्त्री ‘कफ़न’ कहानी में तड़प-तड़प कर मरती दिखाई देती है, तो आज झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली स्त्रियों की दशा इससे अलग नहीं है। प्रेमचंद ने समाज का एक समाजशास्त्री की भांति आकलन किया और सुधार के मार्ग सुझाए। उन्होंने समाज में व्याप्त विसंगतियों को अपनी कथासाहित्य के माध्यम से उजागर किया ताकि लोगों का उस ओर ध्यान आकृष्ट हो और समाज सुधार के क़दम उठाए जा सकें। उन्होंने विधवा स्त्री से विवाह कर स्वयं इस दिशा में पहल की। प्रस्तुत हैप्रेमचंद की कहानी ‘ठाकुर का कुंआ’......  
ठाकुर का कुंआ(कहानी)

लेखकः प्रेमचंद

प्रस्तुतिः डॉ. शरद सिंह
(लेखक परिचयःकथा सम्राट प्रेमचंद का जन्म काशी से चार मील दूर बनारास के पास लमही नामक गांव में 31 जुलाई 1880 कोहुआ था। उनका असली नाम श्री धनपतराय। प्रेमचंद आधुनिक हिन्दीकहानीके पितामह माने जाते हैं।प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि, विभिन्न साहित्य रूपों में, अभिव्यक्त हुई। वहबहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टिकी किन्तु प्रमुख रूप से वह कथाकार हैं। उन्हें अपने जीवन काल में हीकथा सम्राटकी उपाधि मिल गयी थी।

उनकी कृतियां हैः-उपन्यास- वरदान, प्रतिज्ञा, सेवा-सदन, प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान, मनोरमा, मंगलसूत्र(अपूर्ण)।
कहानी संग्रह - प्रेमचंद ने कई कहानियां लिखी है। उनके २१ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए थेजिनमे 300 के लगभग कहानियां है। प्रेमचंद की कहानियों का संग्रह 'मानसरोवर'नाम से आठ भागों में प्रकाशित है।नाटक- संग्राम, कर्बला तथा प्रेम की वेदी।
जीवनियां- महात्मा शेख सादी, दुर्गादास, कलम तलवार और त्याग, जीवन-सार(आत्म कथात्मक)
बाल रचनाएं- राम चर्चा ,मनमोदक, जंगल की कहानियां, आदि।

8 अक्टूबर 1936 को प्रेमचंद का निधन हुआ।)



   जोखू ने लोटा मुंह से लगाया तोपानी में सख्त बदबू आई । गंगीसे बोला-‘यह कैसा पानी है ? मारे बास के पियानहीं जाता । गला सूखाजा रहा है और तू सडा़ पानी पिलाए देती है !’
       गंगी प्रतिदिन शामपानी भर लिया करती थी । कुआं दूर था, बार-बारजाना मुश्किल था । कल वह पानीलायी, तो उसमें बू बिलकुल न थी, आज पानी मेंबदबू कैसी ! लोटा नाक से लगाया, तो सचमुच बदबू थी । जरुर  कोई जानवर कुएंमें गिरकर मर गया होगा, मगर दूसरा पानी आवेकहां से?
ठाकुर के कुंए पर
कौन चढ़ने देगा ? दूर से लोग डांट बताऍगे ।साहू का कुआगांव के उस सिरे पर है, परन्तु वहां कौन पानी भरने देगा ? कोई कुंआ गांव में नहीं है।
      जोखू कई दिन सेबीमार हैं । कुछ देर तक तो प्यास रोके चुप पड़ारहा, फिरबोला-‘अब तो मारे प्यास के रहा नहीं जाता । ला, थोड़ा पानी नाकबंदकरके पी लूं ।
     गंगी ने पानी न
दिया । खराब पानी से बीमारी बढ़ जाएगी इतना जानतीथी, परंतु यह न जानती थी कि पानी को उबाल देने से उसकी खराबी जातीरहतीहैं । बोली-‘यह पानी कैसे पियोगे ? न जाने कौन जानवर मरा हैं। कुंएसे मैंदूसरा पानी लाए देती हूं।’
        जोखू ने आश्चर्यसे उसकी ओर देखा-‘पानी कहां से लाएगी ?’
       ‘ठाकुर और साहू केदो कुंएतो हैं। क्यों एक लोटा पानी न भरने देंगे?’
       ‘हाथ-पांव तुड़वा आएगी और कुछ न होगा । बैठ चुपके से । ब्राहम्णदेवता आशीर्वाद देंगे, ठाकुर लाठी मारेगें, साहूजी एक पांच लेगें । गराबीका दर्द कौन समझता हैं ! हम तोमर भी जाते है, तो कोई दुआर पर झांकनेनहीं आता, कंधा देना तो बड़ी बात है। ऐसे लोग कुएंसे पानी भरने देंगे ?’इन शब्दों मेंकड़वा सत्य था । गंगी क्या जवाब देती, किन्तु उसने वह बदबूदार पानी पीने को नदिया ।


         रात के नौ बजे थे । थके-मांदे मजदूर तो सो चुके थे, ठाकुर केदरवाजे पर दस-पांच बेफिक्रे जमा थे मैदान में ।बहादुरी का तो न जमानारहा है, न मौका। कानूनी बहादुरी की बातें हो रहीथीं । कितनी होशियारी सेठाकुर ने थानेदार को एक खास मुकदमे की नकल ले आए । नाजिरऔर मोहतिमिम, सभीकहते थे, नकल नहीं मिल सकती । कोई पचास मांगता, कोई सौ। यहांबे-पैसे-कौड़ी नकल उड़ा दी । काम करने ढंग चाहिए ।
         इसी समय गंगी कुंएसे पानी लेने पहुंची  कुप्पी की धुंधलीरोशनी कुएपर आ रही थी । गंगी जगत की आड़ मेबैठी मौके का इंतजार करने लगी । इसकुंए का पानी सारा गांव पीता हैं ।किसी के लिए रोका नहीं, सिर्फ ये बदनसीब नहीं भर सकते ।गंगी का विद्रोहीदिल रिवाजी पाबंदियों और मजबूरियों पर चोटेंकरने लगा-हम क्यों नीच हैं और ये लोगक्यों ऊंचे हैं ? इसलिए कि ये लोग गलेमें तागा डाल लेतेहैं ? यहां तो जितने है, एक-से-एक छंटे हैं । चोरी येकरें, जाल-फरेब ये करें, झूठे मुकदमे ये करें । अभी इस ठाकुर नेतो उस दिनबेचारे गड़रिए की भेड़ चुरा ली थी और बाद मे मारकर खा गया । इन्हींपंडितके घर में तो बारहों मास जुआ होता है। यही साहू जी तो घी में तेल मिलाकरबेचते है । काम करा लेते हैं, मजूरी देते नानी मरती है । किस-किस बातमेहमसे ऊंचे हैं, हम गली-गली चिल्लाते नहीं कि हम ऊंचे है, हम ऊंचे । कभीगांव में आ जाती हूँ, तो रस-भरी आंख से देखने लगते हैं। जैसे सबकी छाती परसांपलोटने लगता है, परंतु घमंड यह कि हम ऊंचे हैं!
         कुंएपर किसी केआने की आहट हुई । गंगी की छाती धक-धक करने लगी ।कहीं देख ले तो गजब हो जाए । एकलात भी तो नीचे न पड़े । उसाने घड़ा औररस्सी उठा ली और झुककर चलती हुई एक वृक्षके अंधेरे साए मे जा खड़ी हुई ।कब इन लोगों को दया आती है किसी पर ! बेचारे महगूको इतना मारा कि महीनोंलहू थूकता रहा। इसीलिए तो कि उसने बेगार न दी थी । इस पर येलोग ऊंचे बनतेहैं ?

कुंएपर स्त्रियां पानी भरने आयी थी। इनमें बातहो रही थीं ।
      ‘खान खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के लिएपैसे नहीं है।
      ‘हम लोगों को आराम से बैठे देखकर जैसे मरदों को जलन होती हैं ।
      ‘हां, यह तो न हुआ किकलसिया उठाकर भर लाते। बस, हुकुम चला दिया कि ताजा पानी लाओ, जैसे हम लौंडियां ही तो हैं।
       ‘लौंडियां नहीं तो और क्या हो तुम? रोटी-कपड़ा नहीं पातीं ? दस-पांच रुपये भीछीन-झपटकर ले ही लेती हो। और लौंडियां कैसी होती हैं!
        ‘मत लजाओ, दीदी!छिन-भर आराम करने को जी तरसकर रह जाता है। इतनाकाम किसी दूसरे के घर कर देती, तो इससे कहीं आराम से रहती। ऊपर से वह एहसानमानता ! यहां कामकरते-करते मर जाओ, पर किसी का मुंह ही सीधा नहीं होता
        दोनों पानी भरकर चली गई, तो गंगी वृक्ष की छाया से निकली और कुंए की जगत के पास आयी । बेफिक्रे चले गऐ थे । ठाकुर भी दरवाजा बंदर कर अंदरआंगन मेंसोने जा रहे थें । गंगी ने क्षणिक सुख की सांस ली। किसी तरह मैदानतो साफ हुआ। अमृतचुरा लाने के लिए जो राजकुमार किसी जमाने में गया था, वह भी शायद इतनी सावधानी के साथ और समझ-बूझकर न गया हो । गंगीदबे पांव कुंएकी जगत पर चढ़ी, विजय का ऐसा अनुभव उसे पहले कभी न हुआ ।
        उसने रस्सी का फंदा घड़े में डाला । दाएं-बाएं चौकन्नी दृष्टी सेदेखा जैसेकोई सिपाही रात को शत्रु के किले में सूराख कर रहा हो । अगर इससमय वह पकड़ ली गई, तो फिर उसके लिए माफी या रियायत की रत्ती-भर उम्मीदनहीं । अंतमे देवताओं को याद करके उसने कलेजा मजबूत किया और घड़ा कुंएमें डाल दिया ।
         घड़े ने पानी में गोता लगाया, बहुत ही आहिस्ता । जरा-सी आवाज न हुईगंगी ने दो-चार हाथ जल्दी-जल्दी मारे । घड़ा कुंए के मुंह तक आ पहुंचा ।कोई बड़ाशहजोर पहलवान भी इतनी तेजी से न खींच सकता था।
      गंगी झुकी कि घड़े को पकड़कर जगत पर रखें कि एकाएक ठाकुर साहब का दरवाजाखुल गया । शेर का मुंह इससे अधिक भयानक न होगा।
            गंगी के हाथ रस्सी छूट गई । रस्सी के साथ घड़ा धड़ाम से पानी मेंगिरा औरकई क्षण तक पानी में हिलकोरे की आवाजें सुनाई देती रहीं ।
           ठाकुर ‘कौन है, कौन है ?’ पुकारतेहुए कुंए की तरफ जा रहे थें और गंगी जगत से कूदकर भागी जा रही थी ।
      

 

घर पहुंचकर देखा कि लोटा मुंह से लगाए जोखू वही मैला गंदा पानी पी रहा है।

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